मां की जाति के आधार पर SC सर्टिफिकेट! सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

सोशल मीडिया पर यह दावा गलत है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति (SC) प्रमाणपत्र अब केवल मां की जाति पर आधारित होगा। भारत में जाति का निर्धारण मुख्य रूप से पिता की जाति और निवास स्थान के आधार पर होता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में ही मां की जाति पर विचार किया जा सकता है, वह भी कानूनी जांच के बाद।

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sc certificate for girl based on caste of mom not non sc dad

हाल के दिनों में सोशल मीडिया और कुछ व्हाट्सऐप संदेशों में यह दावा तेजी से फैलाया गया कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि अब अनुसूचित जाति (SC) का प्रमाणपत्र मां की जाति के आधार पर दिया जाएगा। लेकिन हकीकत में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कोई फैसला नहीं सुनाया है। यह दावा पूरी तरह से भ्रामक और तथ्यहीन है।

भारत में जाति निर्धारण का कानूनी आधार

भारत में किसी व्यक्ति की जाति का निर्धारण मुख्य रूप से पितृसत्तात्मक वंश (patrilineal descent) के आधार पर किया जाता है। इसका मतलब है कि प्रमाणपत्र जारी करते समय आमतौर पर पिता की जाति को आधार माना जाता है। केंद्रीय और राज्य सरकारों दोनों के पास ऐसी स्पष्ट गाइडलाइन हैं, जिनके अनुसार किसी व्यक्ति को अनुसूचित जाति, जनजाति या पिछड़ा वर्ग का प्रमाणपत्र पिता की जाति और मूल निवास स्थान (domicile) के आधार पर ही दिया जाता है।

जाति निर्धारण में मां की भूमिका कब आती है

यद्यपि सामान्य स्थिति में पिता की जाति को ही आधार माना जाता है, कुछ विशेष मामलों में अपवाद भी पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति के माता-पिता में से केवल एक अनुसूचित जाति समुदाय से संबंधित है और यह स्थापित हो सके कि उस व्यक्ति ने मां के समुदाय की सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराओं को अपनाया है, तब वह SC प्रमाणपत्र के लिए पात्र हो सकता है। लेकिन यह निर्णय सामान्य प्रक्रिया से नहीं, बल्कि प्रत्येक मामले की विशेष परिस्थितियों और कानूनी जांच के बाद लिया जाता है।

अदालतों के कुछ पूर्व फ़ैसले क्या कहते हैं

कई बार उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय ने इस विषय पर अलग-अलग संदर्भों में टिप्पणियां की हैं, लेकिन उनमें से किसी में भी “मां की जाति ही एकमात्र निर्णायक होगी” जैसी बात नहीं कही गई। अदालतों ने हमेशा यही स्पष्ट किया है कि यदि किसी बच्चे का पालन-पोषण ऐसे वातावरण में हुआ हो जहाँ उसने अनुसूचित जाति समुदाय की परंपराएं, सामाजिक स्थिति और रीति-रिवाज आत्मसात किए हों, तो परिस्थितियों के अनुसार उसे प्रमाणपत्र दिया जा सकता है। लेकिन यह मां की जाति पर स्वतः आधारित अधिकार नहीं बल्कि साक्ष्य और सामाजिक व्यवहार पर आधारित निर्णय होता है।

सोशल मीडिया पर फैले दावे क्यों खतरनाक हैं

आज के डिजिटल युग में, न्यायालय के फैसलों को बिना जांचे-परखे सोशल मीडिया पर साझा करना बेहद आम हो गया है। ऐसे दावे न केवल भ्रम फैलाते हैं, बल्कि संवेदनशील विषयों जैसे जाति और सामाजिक न्याय नीति पर लोगों में गलतफहमी भी पैदा कर देते हैं। सुप्रीम कोर्ट या किसी भी संवैधानिक संस्था के आदेश को फैलाने से पहले उसके आधिकारिक वेबसाइट या प्रेस रिलीज़ से सत्यापन करना जरूरी है।

भारत में SC प्रमाणपत्र जारी करने की प्रक्रिया

अनुसूचित जाति प्रमाणपत्र आमतौर पर जिला मजिस्ट्रेट, उपमंडल अधिकारी (SDM) या तहसील स्तर के अधिकृत अधिकारियों द्वारा जारी किए जाते हैं। इसके लिए व्यक्ति को अपने पिता या परिवार की जाति से संबंधित दस्तावेज़, निवास प्रमाणपत्र और अन्य आवश्यक साक्ष्य देने होते हैं। यदि किसी विशेष परिस्थिति में मां की जाति को लेकर दावा किया जाता है, तो अधिकारी उसे सत्यापन और जांच प्रक्रिया के बाद ही स्वीकार करते हैं।

कानूनी विशेषज्ञों की राय

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि भारत का संविधान और अनुसूचित जाति से संबंधित नियम जातिगत पहचान को वंशानुगत लेकिन सामाजिक संदर्भ में जांचने योग्य मानते हैं। ऐसे में केवल मां की जाति के आधार पर SC प्रमाणपत्र देने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। हालाँकि, यदि मां SC वर्ग से है और व्यक्ति ने उसी समाज में जन्म लेकर वहीं की परंपराओं को अपनाया है, तो योग्य प्राधिकारियों द्वारा केस-टू-केस स्थिति में विचार किया जा सकता है।

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info@amritycollege.org.in

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