गार्ड से करोड़पति तक का सफर! खुद की कंपनी खोलकर सालाना कमा रहा करोड़ों

भागलपुर के नन्दीकेश ने मेहनत और हिम्मत से अपनी किस्मत बदल दी। कभी 15 हजार की गार्ड की नौकरी करने वाला यह युवक आज 1 करोड़ की बैग फैक्ट्री का मालिक है। लॉकडाउन के बाद गांव लौटकर नन्दीकेश ने संघर्ष से सफलता तक का सफर तय किया और अब युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुके हैं।

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quit guard job to start company turnover of rs 1 crore

कहते हैं, मेहनत करने वाला कभी हारता नहीं। ठीक यही साबित कर दिखाया है भागलपुर के तेलघि गांव के रहने वाले नन्दीकेश ने। कभी 15 हजार रुपये महीने की गार्ड की नौकरी करने वाला यह साधारण युवक आज एक करोड़ रुपये की वैल्यू वाली कंपनी का मालिक बन चुका है। लेकिन इसकी कहानी सिर्फ आंकड़ों की नहीं, यह कहानी है संघर्ष, हिम्मत और उस आग की जो किसी इंसान को सफल बनाती है।

गरीबी से शुरू हुआ बड़ा सफर

नन्दीकेश का बचपन कठिनाइयों से भरा था। पिता मजदूर थे और घर की आर्थिक स्थिति हमेशा कमजोर रही। पढ़ाई आठवीं तक ही हो पाई क्योंकि परिवार की जिम्मेदारियां जल्दी कंधे पर आ गईं। घर का खर्च चलाने के लिए उन्हें अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ी और काम की तलाश में मुंबई जाना पड़ा। यही सफर उनके जीवन को मोड़ देने वाला साबित हुआ।

मुंबई में गार्ड की नौकरी से शुरू हुआ असली जीवन पाठ

मुंबई पहुंचकर नन्दीकेश को बैग फैक्ट्री में गार्ड की नौकरी मिली। महीने के 15 हजार रुपये में खुद का खर्च निकालना और थोड़ा बचत करना आसान नहीं था, पर उन्होंने हार नहीं मानी। वहीं से उन्हें अपने जीवन का सबसे बड़ा सबक मिला मेहनत का कोई विकल्प नहीं। रोज मजदूरों को बैग बनाते देखते हुए उनके मन में एक सवाल गूंजता रहा “क्या मैं बिहार में खुद की फैक्ट्री नहीं खोल सकता?”

लॉकडाउन बना जीवन का टर्निंग पॉइंट

साल 2020 में जब लॉकडाउन लगा, नन्दीकेश मुंबई में ही थे। उस समय घर जाने की चिंता सताने लगी, लेकिन श्रमिक ट्रेन चलने के बाद वह किसी तरह भागलपुर वापस पहुंचे। यहीं से उनके जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ। घर लौटकर उन्हें एक बड़ी सच्चाई दिखी – बिहार के मजदूर मुंबई में बैग बनाते हैं, और वही बैग वापस बिहार में बेचे जाते हैं। क्यों न बैग यहीं पर बनाए जाएं? इस विचार ने उनके भीतर नई ऊर्जा भर दी।

संघर्ष और साहस से शुरू हुई फैक्ट्री

अपना सपना साकार करने के लिए नन्दीकेश ने दोस्तों से पैसे उधार लिए, बैंक से लोन लिया और यहां तक कि अपने खेत को गिरवी रख दिया। बियाडा इलाके में उन्होंने एक छोटे से शेड में बैग बनाने की यूनिट शुरू की। शुरुआत में मुश्किलें आईं – मशीनें खराब हुईं, ऑर्डर नहीं मिले, मजदूरों को वेतन देने में दिक्कतें आईं। कई बार लगा कि फैक्ट्री बंद करनी पड़ेगी। लेकिन उन्होंने हार मानने की बजाय हर चुनौती को सबक में बदला।

सफलता की राह पर बढ़ते कदम

धीरे-धीरे स्थानीय बाजार से ऑर्डर मिलने लगे। बिहार के स्कूलों, दुकानों और संस्थानों ने उनके यहाँ से बैग मंगवाने शुरू कर दिए। पिछले साल उनकी फैक्ट्री का टर्नओवर करीब 80 लाख रुपये तक पहुंच गया और अब वह अगले साल इसे एक करोड़ तक ले जाने की तैयारी में हैं। नन्दीकेश के अनुसार, “सरकार से सहयोग मिला, लेकिन सबसे बड़ा बल खुद पर भरोसा करने से मिला।”

सादगी में छिपा है असली आकर्षण

इतनी सफलता के बाद भी नन्दीकेश का रहन-सहन आज भी उतना ही सरल है जितना पहले था। वही पुरानी साइकिल, वही साधारण कपड़े और वही मुस्कान—मानो सफलता ने बस उनके सपनों को बड़ा किया हो, इंसान को नहीं बदला। वह कहते हैं, “मैं चाहता हूं कि मेरे गांव के युवा भी कुछ करें, मेहनत करें और हार मानने से पहले खुद को साबित करें।”

युवाओं के लिए प्रेरणा

नन्दीकेश की कहानी हर उस युवा के लिए प्रेरणा है जो जीवन में मुश्किलों से जूझ रहे हैं। उन्होंने दिखाया कि अगर सोच साफ हो, नीयत मजबूत हो और मेहनत जारी रहे, तो कोई सपना दूर नहीं होता। आज उनकी फैक्ट्री न सिर्फ रोजगार दे रही है, बल्कि यह भी साबित कर रही है कि ‘बिहार अब पिछड़ा नहीं, बल्कि प्रगतिशील बन रहा है।’

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