
संपत्ति विवादों को लेकर अक्सर परिवार के सदस्यों को सालों तक अदालतों के चक्कर लगाने पड़ते हैं, जिसमें भारी भरकम कानूनी फीस और समय की बर्बादी होती है, लेकिन, अब इस समस्या का एक आसान और सस्ता कानूनी समाधान उपलब्ध है, आपसी सहमति से होने वाले संपत्ति के बँटवारे के लिए एक विशेष प्रावधान है, जिसके तहत महज कुछ हजार रुपये के खर्च पर यह प्रक्रिया पूरी की जा सकती है।
यह भी देखें: What’s Trending: 2025 में लोगों ने गूगल पर क्या ढूंढा? टॉप सर्च सवालों की पूरी लिस्ट
Table of Contents
क्या है यह आसान तरीका?
दरअसल, यह समाधान ‘पार्टीशन डीड’ (Partition Deed) या ‘पारिवारिक समझौता’ (Family Settlement Agreement) के माध्यम से निकाला जाता है। यह एक कानूनी दस्तावेज़ है जो तब प्रभावी होता है जब संपत्ति के सभी हिस्सेदार (Co-owners) बँटवारे की शर्तों पर सहमत होते हैं।
इस प्रक्रिया में कोर्ट जाने की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि स्थानीय सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में दस्तावेज़ को पंजीकृत (Register) कराया जाता है।
₹5,000 का खर्च और यूपी सरकार का प्रस्ताव
संपत्ति के बँटवारे की लागत मुख्य रूप से स्टांप शुल्क (Stamp Duty) और पंजीकरण शुल्क (Registration Fee) पर निर्भर करती है, जो आमतौर पर संपत्ति के कुल बाजार मूल्य का एक प्रतिशत होता है (यह दर राज्य-दर-राज्य अलग होती है)।
यह भी देखें: JioFiber/Airtel का WiFi पासवर्ड बदलें सिर्फ 2 मिनट में! ये रहा आसान तरीका
हालांकि, उत्तर प्रदेश (UP) सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए पारिवारिक बँटवारे को सस्ता करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया है। इस प्रस्ताव के तहत, यदि बँटवारा आपसी सहमति से हो रहा है, तो संपत्ति के मूल्य के प्रतिशत के बजाय, एक निश्चित और न्यूनतम स्टांप शुल्क लगाया जाएगा, जो लगभग ₹5,000 निर्धारित किया गया है।
यह कदम आम जनता को लंबी कानूनी लड़ाई से बचाकर, सस्ता और सुलभ न्याय प्रदान करने की दिशा में एक बड़ी पहल है।
बँटवारे की चरणबद्ध कानूनी प्रक्रिया
बिना कोर्ट जाए संपत्ति का बँटवारा करने के लिए इन चरणों का पालन करना आवश्यक है:
- सभी दावेदारों के बीच बँटवारे के हर पहलू पर लिखित या मौखिक सहमति जरूरी है।
- एक कानूनी विशेषज्ञ या वकील की मदद से ‘पार्टीशन डीड’ का मसौदा तैयार करें, जिसमें स्पष्ट रूप से दर्शाया गया हो कि किसे संपत्ति का कौन सा हिस्सा मिल रहा है।
- राज्य के मौजूदा नियमों के अनुसार आवश्यक स्टांप शुल्क का भुगतान करें। (यूपी में यह ₹5,000 तक हो सकता है)।
- सभी संबंधित पक्षों और दो गवाहों की उपस्थिति में सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में डीड का पंजीकरण कराएं।
- पंजीकरण के बाद, राजस्व विभाग के रिकॉर्ड में संपत्ति के नए मालिकों के नाम दर्ज (दाखिल-खारिज) कराना अनिवार्य है।
यह भी देखें: Voter List Uttarakhand: 2003 की वोटर लिस्ट में नाम नहीं है? SIR में मैपिंग के लिए ये आसान तरीका अपनाएं
यदि सहमति न बने तो?
यदि परिवार के भीतर कोई सदस्य बँटवारे से असहमत है या विवाद सुलझ नहीं रहा है, तो यह मामला सिविल कोर्ट में चला जाता है, ऐसी स्थिति में ‘पार्टीशन सूट’ (Partition Suit) दायर करना पड़ता है, जो एक लंबी और खर्चीली न्यायिक प्रक्रिया है।
पारिवारिक मामलों को शांतिपूर्ण और सस्ते तरीके से निपटाने के लिए, आप राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA) की वेबसाइट पर जाकर लोक अदालतों या मध्यस्थता (Mediation) केंद्रों की सहायता भी ले सकते हैं।

















