भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में हाल के वर्षों में बड़े बदलाव देखे गए हैं, खासकर दो-फ्रंट युद्ध की चुनौती को लेकर। पूर्व की मुकाबले अब देश की सैन्य रणनीति अधिक सक्रिय और दूरगामी सोच के साथ परिभाषित की जा रही है। इस नई रणनीति में भारत ने अपनी सीमाओं की सुरक्षा को एक साथ दो मोर्चों पर संभालने की क्षमता पर विशेष ध्यान दिया है।

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दो मोर्चों की चुनौती और भारत की तैयारी
भारत को अपनी उत्तरी सीमा पर चीन और पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान से एक साथ मुकाबले की परिस्थिति का सामना करना पड़ सकता है। इस चुनौती को समझते हुए देश ने अपनी सैन्य तैयारियों में जमीनी, वायु और समुद्री शक्ति का सशक्तिकरण किया है। दोनों सीमाओं के तनावपूर्ण माहौल में भारत ने आधुनिक हथियारों और रणनीतिक संसाधनों का विस्तार किया है, जिससे स्थिति के अनुसार तेजी से प्रतिक्रिया दी जा सके। इसके साथ ही, सीमा क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं का विकास कर जल्द सैनिक तैनाती को संभव बनाया जा रहा है।
सैन्य रणनीति में बदलाव की प्रमुख बातें
भारत की नई सुरक्षा नीति में सक्रिय जवाबी कार्रवाई और निवारक नीतियों को प्रमुखता दी गई है। यह नीति पारंपरिक रक्षा से एक कदम आगे बढ़कर आक्रामक निवारण (offensive deterrence) पर केंद्रित है, जिसमें आतंकवाद और सीमा पार खतरों का पहले से ही जवाब देना शामिल है। नई रणनीति में उच्च तकनीकी हथियारों और मिसाइल प्रणालियों का इस्तेमाल बढ़ा है, जिससे दुश्मनों को तेजी से निपटाने की क्षमता बढ़ती है। इसके अलावा, परमाणु रणनीति में भी ‘आश्वस्त जवाब’ के सिद्धांत को मजबूती से अपनाया गया है, जिससे विराम और संतुलन बना रहता है।
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विदेशी विशेषज्ञों की दृष्टि
अमेरिकी और अन्य वैश्विक रक्षा विशेषज्ञ भी भारत की इन चुनौतियों को समझते हुए उसकी रणनीतिक प्रगति की सराहना कर रहे हैं। वे मानते हैं कि भारत ने न केवल अपनी सैन्य ताकत को मजबूत किया है, बल्कि क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए भी सकारात्मक भूमिका निभाई है। यह बदलाव भारत को एक मजबूत और आत्मनिर्भर रक्षा व्यवस्था वाले देश के रूप में स्थापित करता है, जो किसी भी आकस्मिक परिस्थिति में निर्णायक प्रभाव डालने में सक्षम है।
इस नई रणनीति में भारत की क्षमता ही उसकी सुरक्षा का आधार है। दो मोर्चों पर एक साथ लड़ने की तैयारी के साथ, देश ने यह संदेश दिया है कि वह अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय शांति की रक्षा के लिए पूरी तरह से सक्षम है। यह परिष्कृत और तात्कालिक रणनीति देश को भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों के लिए बेहतर तरीके से तैयार करती है।

















