
समाज तेजी से बदल रहा है, लेकिन अभी भी कई परिवारों में बेटियों को पैतृक संपत्ति से वंचित कर दिया जाता है। परिवार का तर्क साफ होता है—“अब तुम हमारे घर की नहीं रहीं, तुम्हारी शादी हो चुकी है, वो भी दूसरी जाति में।” किसी के मनपसंद जीवनसाथी चुन लेने भर से, क्या कभी कोई अपना हक खो सकता है? यह सवाल हर उस बेटी के मन में उठता है, जो परंपरा और कानून के बीच जूझ रही है।
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हाईकोर्ट का भरोसा बढ़ाने वाला फैसला
गुजरात हाईकोर्ट ने ताजा फैसले में साफ कर दिया है कि बेटी चाहे जिस भी जाति या धर्म में शादी करे, उसका पैतृक संपत्ति पर कानूनी अधिकार बरकरार रहता है। कोर्ट ने कहा, “कानून, जाति या परंपरा से ऊपर है।” यह फैसला देशभर की उन बेटियों के लिए नई उम्मीद है, जिन्हें शादी के नाम पर रिश्तों और हक से दूर कर दिया जाता था।
क्या कहता है हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम?
2005 के संशोधन के बाद, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 6 के मुताबिक बेटी को बेटे के बराबर सह-उत्तराधिकारी घोषित किया गया है। यानी संपत्ति पर बेटियों का भी वैसा ही अधिकार है, जैसा बेटों का। अदालत ने कहा है कि इस अधिकार को न कोई पारिवारिक विवाद, न शादी और न ही जाति बदलना खत्म कर सकता है। यह कानून वर्ष 1956 से ही लागू है, बस 2005 में इसे और स्पष्ट किया गया।
कानूनी नजरिए से बेटी की संपत्ति में हिस्सेदारी
गुजरात हाईकोर्ट ने साफ कहा कि संपत्ति पर बेटी का हक जन्म से है, और यह उसके सिर से उस वक्त तक नहीं छिन सकता जब तक वह खुद लिखित में न छोड़े या अदालत निर्णय न दे। परिवार यदि किसी दस्तावेज में बिना मर्जी उसका नाम हटा भी दे, तो वह कानूनी तौर पर शून्य है। ऐसे में कोई बेटी कानूनी लड़ाई लड़ती है तो उसकी जीत पक्की है।
शादी और जाति
कई बार बेटियां प्यार या अपना भविष्य संवारने के लिए परिवार की मर्जी के खिलाफ पराया घर चुनती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनका पैतृक हक खत्म हो गया। कोर्ट ने कहा, “दूसरी जाति में शादी करने से बेटी कभी संपत्ति से बेदखल नहीं की जा सकती।” ऐसे में आपसी रिश्ते चाहे जैसे हों, कानून बेटियों के अधिकार की ढाल बनेगा।
परिवार और बेटियों के लिए संदेश
यह फैसला केवल कानून की भाषा नहीं, बल्कि समाज की सोच को बदलने वाली दस्तक भी है। बेटियों को चाहिए कि वे अपने अधिकार को पहचानें और जरूरत पड़ने पर न्याय के दरवाजे खटखटाएं। परिवारों को भी समझना होगा कि क़ानून अब बराबरी और इंसाफ पर टिका है, न कि परंपरा या जाति पर। बेटी चाहे कहीं भी, किसी भी जाति में शादी करे, उसका हिस्सा पैतृक संपत्ति पर बना रहेगा।
गुजरात हाईकोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले ने बेटियों के हक को मजबूत किया है। अब वक्त है कि बेटियां खुद पर भरोसा रखें, अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाएं और परिवार भी पुरानी सोच को पीछे छोड़कर कानून और इंसानियत की राह पर आगे बढ़ें। सच यही है कि न जाति, न शादी, बल्कि जन्म ही बेटी को पैतृक संपत्ति में हिस्सेदार बनाता है और यह हक कोई छीन नहीं सकता।

















